विद्यामंत्र : भोजन शरीर को तृप्त करता है लेकिन पूजन से आत्मा को तृप्ति मिलती है - Khabri Guru

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विद्यामंत्र : भोजन शरीर को तृप्त करता है लेकिन पूजन से आत्मा को तृप्ति मिलती है

जबलपुर। दयोदय गौशाला तीर्थ तिलवारा घाट में विराजमान राष्ट्रसंत आचार्य गुरुवर विद्यासागर महाराज ने कहा कि आज पूजन और भोजन की थाली सोने चांदी और अन्य पात्रों के माध्यम से सजाई जाती है,  हमें समझ में नहीं आ रहा कि अब पूजन और भोजन में क्या अंतर है, लेकिन पूजन और भोजन सिर्फ सजाने से नहीं होता इसमें बहुत अंतर है पूजन आत्मा के भीतर तक उतरता है, भोजन बाहर शरीर को तृप्त करता है।

 भोजन में पैसे खर्च होते हैं, पूजन में पुण्य संचित होता है, भोजन पांच इंद्रियों के अलावा कुछ संतुष्ट नहीं करता जबकि पूजन का विधान आपके भावों को निर्मल करता है। पूजन के माध्यम से जो पुण्य संचित हुआ वह उन निर्मल भावों को बढ़ाता है, पूजन सामग्री चढ़ाकर आप उन पाप कर्मों को साफ करते हैं और यह काम प्रतिदिन पूजन से बढ़ता रहता है।इस से  अनादि काल से संचित बुरे कर्म नष्ट होंगे और सद्गति मिलेगी, यह प्रक्रिया आस्था का विषय बन जाती है जो सीधी आंखों से नहीं दिखती लेकिन आस्था की आंखों से दिखाई देती है, इससे अपनी पीढ़ा नही दूसरों की पीड़ा दूर करने की इच्छा बढ़ जाती है ।महामारी के समय आप लोगों ने पीड़ा का अनुभव किया वही रहीस व्यक्ति कहीं भी जाकर चिकित्सालय में इलाज करा रहे थे लेकिन एक ऐसा भी वर्ग है जिसका कोई प्रबंध नहीं था लगातार एक-दो दिन नहीं 2 वर्ष तक। लेकिन सेवाभावी लगातार सेवा करते रहे चिंता करते रहे कि मैं इन पीड़ितो के लिए क्या कर सकता हूं। अब भक्तों ने संकल्प ले लिया है, कई जगहों पर इस तरह की सेवा प्रकल्प शुरू हुए हैं जिसमें अपनी पीड़ा की बात नहीं दूसरों की सेवा ही सर्वोपरि है। इसके लिए छोटे-छोटे बच्चे भी गुल्लक लेकर पर पीड़ित मानवता की सेवा के लिए दान कर रहे हैं। भारत करुणामय हो गया लाखों की आहुति  के बाद यह बात अब जागृत हो गई है, जैसा कि पूर्वज अपनी आय  से नियमित अंशदान करते थे प्रतिदिन, प्रतिपल , अब लोग पूर्वजों की तरह ही संकल्प ले रहे हैं,  जिस तरह पूर्वज पहली रोटी गाय की, बिना गाय को पहली रोटी खिलाई स्वयं नहीं खाते थे, इसी तरह अब लोग औषधी के लिए दान करने लगे हैं, ₹5 हो ₹10 हो या कितनी भी बड़ी राशि हो,  इस तरह की बड़ी  से बड़ी विपत्ति महामारी में छोटी-छोटी राशि से भी बड़ा काम हो जाता है। 

यह संकल्प अब लोगों ने लिया है कि अपनी आय का कुछ अंश ,दान जरूर करेंगे वह कर रहे हैं। अब वे उस अंश धन का सेवन नहीं करते उनका कहना है कि जो दान का संकल्प ले लिया है वह धन अब निर्माल्य हो गया है। इसलिए उस संकल्प को तुरंत पूरा करना चाहिए। दयोदय तीर्थ में बन रहे पूर्णआयु आयुर्वेदिक चिकित्सालय में पीड़ित मानवता की सेवा होगी इसे समाज को शीघ्र मानवता की सेवा के लिए बनाकर अर्पित करना चाहिए। विलंब होने से भी धेय्य पूरा नहीं होता, घर का काम बाद में सामाजिक पुण्य के काम पहले किए जाने चाहिए। 

आचार्य श्री को शास्त्र अर्पित करने का सौभाग्य हैदराबाद से आये इंद्र चंद्र जैन नीरज एवं मनोज जैन को मिला। आहार सौभाग्य राजकुमार मामा श्वेता जैन जैन को प्राप्त हुआ। 

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