विद्यामंत्र : जिज्ञासा के साथ श्रवण करने पर ही ज्ञान की प्राप्ति सम्भव - Khabri Guru

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विद्यामंत्र : जिज्ञासा के साथ श्रवण करने पर ही ज्ञान की प्राप्ति सम्भव

आचार्य श्री को आहार सौभाग्य भाजपा के प्रदेश कोषाध्यक्ष सीए अखिलेश जैन परिवार को प्राप्त हुआ। 

जबलपुर। दयोदय तीर्थ तिलवाराघाट में दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि शब्द को हम कान से सुनते हैं हम सिर्फ कान से नहीं सुनते, मन से बुद्धि से, ध्यान से भी सुनते है, किसी ने सुना और अनसुना किया इसे आनाकानी कहते हैं , सुना तो है लेकिन ध्यान नहीं दिया परंतु यदि ध्यान लगाकर जिज्ञासा और अभिरुचि के साथ सुना उसे ही ज्ञान प्राप्त होता है। व्यक्ति कान वाला तो है लेकिन मन बुद्धि से ही सुनता है यह विश्वास से नहीं कहा जा सकता, कान से सुनकर भी उसका क्या अर्थ होता है उसका क्या प्रयोजन होता है यदि वह नहीं समझता तो उसके सुनने का कोई अर्थ नहीं है।

हमारे आचार्यों ने बताया है कि जिसके पास कान हैं, उसके पास मन बुद्धि है यह कोई निश्चित नियम नहीं है लेकिन जिसके पास मन होता है उसके पास कान अवश्य होते हैं।

आचार्य श्री ने कहा जो बच्चे प्रतिभा संपन्न होते हैं उनने जितना सुना उतना पूरा अर्थ के साथ मनन करते हैं, आत्मसात कर लेते हैं, उनको जो आनंद आता है, जो परिणाम मिलते हैं वह दूसरे बच्चों को नहीं मिलते लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जिस बच्चे के अंक काम आए उसे भी तकलीफ ना हो। एक प्रतिभा संपन्न बच्चे को थोडे भी अंक कम आने पर तकलीफ हो जाती है, वह सोचता है मैंने शत प्रतिशत अंक लेने का संकल्प किया था लेकिन वह पूरा नहीं हुआ , कई बार बच्चे आते हैं कि महाराज जी मुझे 98 परसेंट अंक आए हैं या 99 परसेंट अंक आए हैं लेकिन मैं कहता हूं की 2 परसेंट कम क्यों हो गए। बुद्धिमान बच्चा सुनने के बाद वह सोच लेता, मनन करता है तो उसे को तकलीफ नहीं होती मुस्कान आ जाती है और अगली बार वह शत प्रतिशत अंक के लिए प्रयास करता है। दूसरे लोग खुश हो रहे हैं 98 परसेंट अंक को सुनकर लेकिन वह बुद्धिमान बच्चा इस बात का चिंतन करने लगता है कि अगली बार मुझे पूर्णांक चाहिए। आप सभी को सुनने की प्रक्रिया को, ध्यान करने की और मनन करने की प्रक्रिया को अवश्य अपनाना चाहिए।

एक छोटा सा मेंढक वर्षा काल में आवाज सुनकर कूद गया वह अत्यंत छोटा चने के बराबर था, उसके कानों के माध्यम से उसे आपके पदचाप की आवाज आई उसके पास मन बुद्धि है जिससे वह सावधान हो गया और उसने अपने आप की रक्षा कर ली , कभी आपके कानो में उस छोटे मेंढक की आवाज होने के बाद भी आपने सुना लेकिन उसका मनन नहीं किया उस पर ध्यान नहीं दिया तो आपका पैर उस छोटी से मेंढक पर पर आ जाएगा और मेंढक की मृत्यु हो जाएगी, इसका आशय यह है कि सुनकर ध्यान करना, मनन करना आवश्यक है ।

आचार्य श्री ने कहा हम श्वास तब ले सकते हैं जब हमें विश्वास होता है, सांस लेने में विश्वास होना चाहिए नहीं तो सांस लेने का भी कोई मूल्य नहीं है जब तक जीने का विश्वास होता है तब तक सांसो की गति में अंतर नहीं होता।

आचार्य श्री ने कहा प्रवचन सुनकर ताली बजाकर आप खुश होते हैं लेकिन खुश होना मेरा विषय नहीं है , मैं खुश नहीं होता, मेरा खुश होना तब होगा जब आप प्रवचन सुनकर, मनन ,चिंतन करके सदकार्यों के मार्ग पर चलने लगते हैं। यह पूरी प्रक्रिया पहले सुनना, गुनना और फिर ध्यान लगाने पर आधारित है , इसलिए समय पर परम पुरुषों के सद् वचनों पर ध्यान देंगे तभी हमारे सद्गति को प्राप्त करेंगे जीवन सफल होगा। आपने कितनी भी संपदा अर्जित की हो लेकिन यदि सदकार्यों, दुसरो की सेवा सहयोग में भी पैसा लगाया है तभी वह सफल है उस धन कि सार्थकता है।

चातुर्मास कलश स्थापना समारोह आज 
आचार्य श्री के चातुर्मास कलश स्थापना का समारोह रविवार 01 अगस्त को दोपहर 01 बजे होगा। दयोदय तीर्थ गौशाला तिलवारा घाट में संपन्न होगा। इस दौरान श्रद्धालुओं को दयोदय परिसर में प्रवेश दिया जाएगा

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