भोपाल। मध्य प्रदेश में कांग्रेस को एक और तगड़ा झटका लगने के आसार दिखाई दे रहा है। खण्डवा लोकसभा सीट को लेकर कमलनाथ से चल रही तनातनी के कारण पूर्व केंद्रीय मंत्री और पुर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव कांग्रेस का दामन छोड़कर सिंधिया की राह पर चल सकते हैं। यह मानना है राजनीतिक पंडितों का। कहा जा रहा है कि जिस तरह से यादव इन दिनों नाराज चल रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि वे जल्दी ही कोई कड़ा निर्णय ले सकते हैं।
प्रदेश की तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव की तैयारियों को पुख्ता करने में जुटी कांग्रेस की किलेबंदी में सेंध लग सकती है। वरिष्ठ नेताओं के वर्चस्व की लड़ाई में उपचुनाव से पहले एक झटका लगभग वैसा ही हो सकता है, जैसा ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने से लगा था। भाजपा उपचुनाव में जीत के दावेदार कांग्रेस नेताओं के संपर्क में है। खंडवा लोकसभा सीट को लेकर पूर्व सांसद व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे अरण यादव की नाराजगी की बात सामने आ रही है, वहीं पृथ्वीपुर विधानसभा सीट पर कई बार विधायक रहे स्व. बृजेंद्र सिंह राठौर के पुत्र नीतेंद्र से भाजपा नेताओं की मुलाकात की चर्चा है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष यादव नाराज
खंडवा से अरुण यादव की तगड़ी दावेदारी मानी जा रही है, इधर भाजपा के पास मजबूत विकल्प का अभाव है। हालांकि अरण यादव को लेकर कमल नाथ सहज नहीं हैं। दरअसल, अरुण यादव की कथित नाराजगी की कई वजह हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने कहा था कि सर्वे के आधार पर टिकट दिया जाएगा, जबकि अरुण यादव खंडवा के जमीनी नेता हैं। वे यहां से सांसद रहे हैं। केंद्रीय मंत्री भी बने। उनका प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का साढ़े चार साल का कार्यकाल रहा। अगर उन्हें चुनाव में उतरने का आश्वासन मिलता तो वे तैयारी में जुट जाते। अब जो वक्त तैयारी का है, संगठन उसे अंदरुनी सियासत में जाया कर रहा है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष यादव नाराज
खंडवा से अरुण यादव की तगड़ी दावेदारी मानी जा रही है, इधर भाजपा के पास मजबूत विकल्प का अभाव है। हालांकि अरण यादव को लेकर कमल नाथ सहज नहीं हैं। दरअसल, अरुण यादव की कथित नाराजगी की कई वजह हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने कहा था कि सर्वे के आधार पर टिकट दिया जाएगा, जबकि अरुण यादव खंडवा के जमीनी नेता हैं। वे यहां से सांसद रहे हैं। केंद्रीय मंत्री भी बने। उनका प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का साढ़े चार साल का कार्यकाल रहा। अगर उन्हें चुनाव में उतरने का आश्वासन मिलता तो वे तैयारी में जुट जाते। अब जो वक्त तैयारी का है, संगठन उसे अंदरुनी सियासत में जाया कर रहा है।