जबलपुर। दयोदय तीर्थ में चातुर्मास के लिए विराजमान आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने सोमवार को अपने प्रवचनों के दौरान कहा कि आप अध्ययन उसे कहते हैं जो आपने पढ़ा है, सुना है या आपको पढ़ाया गया है और उसे अपने अध्ययन के रूप में स्वीकार किया है। क्या वास्तव में यह अध्ययन है। अत्यंत गहराई में उतर कर तलस्पर्शी ज्ञान को अध्ययन शोध कहते हैं। तलस्पर्शी का अर्थ होता है अंतःस्थल में जाकर देखना, समझना और ज्ञात करना। आज भले ही इसे हम अध्ययन कह देते हैं, परंतु तलस्पर्शी ज्ञान को प्राप्त करना बहुत कठिन होता है। बहुत कम संख्या में लोगों को यह उपलब्धि होती है।
वह अध्ययन अर्थहीन है जिसके अंतर्गत पढ़ना, पढ़ाना आदि माना जा सकता है और उसमें अध्ययन का पुट लग जाता है लेकिन गहराई में पहुंचने का प्रयास लोग नहीं करते। आचार्य श्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे चाय की पत्ती को उबालकर जो पानी बचता है उसमें चाय का तत्व आ जाता है, चाय की पत्ती ज्यों की त्यों रह जाती है और पत्ती फैकने योग्य हो जाती है। उसका सार निकल जाता है यह अध्ययन से ज्ञात हुआ। अन्यथा चाय की पत्ती रखी रहे, मालूम तो होता है कि यह चाय की पत्ती है लेकिन उसका कोई उपयोग कैसे हो ज्ञात नहीं होता तो अनुपयोगी है ।
कर्म के विषय में यह विवेचन किया गया है कि कर्म कहते तो हैं लेकिन कर्म का क्या काम है वह व्यक्ति कर्म सिद्धांत का अध्ययन कर ले तो उसे अच्छा ज्ञान मिलेगा। पढ़ने-पढ़ाने से कुछ नहीं होता अध्ययन शोध से ज्ञान होता है। दवाई अलग वस्तुएं है दवा का निर्माण अलग है। निर्माण के पश्चात यह महत्वपूर्ण है कि दवा का अध्ययन कितना किया गया उसमें क्या और कितना शुद्ध मिला है। उसकी जानकारी नहीं होने से हम निश्चित नहीं होते कि यह उपयोगी होगी या नही।
अच्छे कर्म के परिणाम भी अच्छे हैं बुरे कर्मों के अध्ययन मंथन से हमें समझ आ जाता है कि अब यह दोबारा गलती नहीं करना चाहिए। अतः हम इस तरह उससे दूर हो सकते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि किसी की मृत्यु हो जाने पर सारा परिवार उसे याद कर उलझा रहता है लेकिन वह नश्वर शरीर का त्याग कर मुक्त हो जाता है। नवजीवन में उसे कुछ भी याद नहीं रहता कि हम कौन थे, क्या थे। पहले उसका आप से संबंध छूट गया। उसके जीवन में दूसरा कर्म आ गया लेकिन आप मोह के कारण बने रहते हैं। कर्म सिद्धांत को जानते हुए हम उसके साथ मोह रखते हैं लेकिन वह अब आपके लिए कुछ नहीं कह रहा, ना कर रहा। एक बार जो चला गया उससे मोह नहीं रखना चाहिए। आप अध्ययनशील बने, पठनशील तो आप हो ही गए हैं। अच्छे अंक लाने के लिए अध्ययनशील बनना है, अध्ययनशील बनने से ही श्रेष्ठ अंको का महत्व होता है।
कई व्यक्ति अच्छे अंक लेकर आते हैं। कंपनी में अच्छे वेतन और अच्छे काम उन्हें मिल जाते हैं लेकिन कुछ समय बाद अध्ययन - अनुभव की कमी के कारण उन्हें निकाल दिया जाता है। इसलिए ऐसे लोगों को अध्ययन शोध पर विश्वास करना चाहिए। आज ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जो पठन नहीं अध्ययन करते हैं।
आचार्य श्री की आहार चर्या का सौभाग्य प्रशांत जैन प्रभात जैन मुंबई राजा भैया सूरत को प्राप्त हुआ।