विद्यामंत्र : चिंतन से हमेशा चिंता की मुक्ति मिलती है - Khabri Guru

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विद्यामंत्र : चिंतन से हमेशा चिंता की मुक्ति मिलती है


जबलपुर। दयोदय तीर्थ गौशाला में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि चिंतन से हमेशा चिंता मुक्ति मिलती है। वे यहाँ श्रद्धालुओं को सम्बोधित कर रहे थे।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जब आप घर के बाहर घूमने निकलते हैं तो आपको कई वस्तुओं के दर्शन होते हैं। कभी शमशानघाट के सामने से आप निकलते हैं तो वहां कई शव जलते हुए दिखते हैं तो कभी कोई अन्य दृश्य दिखाई देता है। एक बार एक दुखी परिवार लौट रहा था, अपने किसी परिजन को श्मशानघाट में दाह करके, यह उसकी धारणा है कि उसके परिवार का एक सदस्य वहां रह गया लेकिन यह अविनाशी सत्य है कि उसकी आत्मा ऊपर चली गई और तुरंत ही किसी के घर एक नया सदस्य आ गया। नए सदस्य के आते ही उसके घर का वातावरण हर्ष में हो गया लेकिन नवजात की मां चिंतित है इस बच्चे का लालन-पालन कैसे होगा, पिता चिंतित है कि मैं इस बच्चे को दुनिया के सारे सुख कैसे दूं? इस चिंता में पिता दूर विदेश चले गए अर्थ संग्रह हेतु, माँ उसके जीवन को सुधारने में लगाती रहती है।

यानी जीव के आते ही चिंता प्रारंभ हो जाती है किंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी जो उन्नति दिख रही है वह नश्वर है। जिस तरह दीपक में डाला गया तेल खत्म होना अनिवार्य है उसी तरह जीवन भी क्षणभंगुर है। यदि परोपकारी कार्य और पुण्य रूपी तेल जीवन में डाल दिया जाता है तो जीवन कुछ दिन और चलता रहता है। स्वयं भी प्रकाशित होता है तो दुनिया को भी लाभ देता है।

आचार्य श्री ने कहा सच्चा सुख हमें प्रकृति से ही प्राप्त होता है। आंखें बंद करके हम प्रकृति का सुंदर चित्रण करें या खुली आंखों से हरियाली और प्रकृति का अवलोकन करें, हमें शांति मिलती है। चंद्रमा हमें शीतलता प्रदान करता है, हमें ऐसी ही भावनाएं करनी चाहिए जो स्वयं को और दूसरों को शीतलता प्रदान करें। हमारे प्रभु हमेशा अमृत वचनों से पूर्ण रहे हैं। महापुरुषों ने सदैव श्रेष्ठ चिंतन कर हमें श्रेष्ठ विचार दिए हैं। प्राकृतिक चित्रों से रोगी भी ठीक हो जाते हैं। जहां किसी भी रोगी को रखा जाए यदि वहां प्राकृतिक दृश्यों के चित्र भी लगा दिए जाए तो परिणामों में अंतर आता है और वह जल्दी ही स्वस्थ हो जाता है।

शांति धारा शांत चित्त के लिए की जाती है। हमारे देश में अमरकंटक एक ऐसा प्राकृतिक स्थल है जहां देवता भी विचरण करने आते हैं। अच्छे दृश्यों का दर्शन कर उसको स्मृति में बनाए रखने को अनुप्रेक्षा कहते हैं। चिकित्सालय भी मंदिर के भांति होने चाहिए, वहाँ दीपक जलने चाहिए ताकि चिकित्सालय में आया व्यक्ति, वातावरण की उज्जवलता से ही ठीक होने लगे, रोगी के आरोग्य होने की चिंता करना चाहिए। चिंतन से हमेशा चिंता की मुक्ति मिलती है। ध्यान, शांत चित्त और स्वच्छ विचार से लगाना चाहिए। हमें दीपावली की तरह अपने अंदर के बुरे विचारों को एक बार अवश्य साफ करना चाहिए उसी से आनंद की प्राप्ति होगी।

आचार्य श्री को चेन्नई से आए नेमीचंद जैन, आदिश्वर जैन बेंगलुरु एवं संध्या सचिन जैन ने शास्त्र अर्पित किए। आहार चर्या का सौभाग्य नागपुर के संतोष जैन ठेकेदार को प्राप्त हुआ। 

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