जबलपुर। पूर्णायु परिसर दयोदय तीर्थ में उद्बोधन देते हुए आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि सामने के दृश्य बहुत अच्छे दिख रहे, अगर आप से पूछा जाए कि क्या दिख रहा है तो आप को आंखों से जो दिख रहा है वह आप जवाब देंगे , संभव है आप उन वस्तुओं से परिचित हो, हमारे पास दो तरह के दर्शन है चक्षु दर्शन और अचक्षु दर्शन।
आपको अंधकार में क्या दिख रहा है तो आप कहेंगे कि कुछ नहीं दिख रहा लेकिन दृश्य - वस्तु दो तरह से देखे जा सकते हैं चक्षु यानी नेत्र से और अचक्षु से, एक नेत्रहीन व्यक्ति भी सब कुछ देख सकता है। कल्पना कीजिए कि चारों तरफ घोर अंधकार है और आपको कुछ नहीं दिखाई दे रहा लेकिन आपकी यह धारणा गलत है कि बिना नेत्र के कुछ दिखाई नहीं देता हम नेत्रहीन नहीं है हमें देखने के लिए अन्य इंद्रिया भी ईश्वर ने दी है, घोर अंधकार में यदि हमें कुछ वस्तु दे दी जाती है तो हम स्पर्श से उस वस्तु का अनुमान लगाते हैं हमारे मन में उस वस्तु की छवि उत्पन्न होने लगती है, यही उत्पन्न छवि नेत्र से भी बनती है। उसके बाद नासिका से गंध महसूस करते हैं जो एक छवि का निर्माण करता है उसके बाद यदि हमने उस वस्तु को चख लिया तो स्वाद इंद्री भी हमारे मन में उसकी छवि बना देती है यानी नेत्र ही नहीं शरीर की अन्य इंद्रियां भी नेत्र का काम करती है, जिसे हम देखना सुनना, खाना, छूना कहते हैं, यह सब एक वस्तु की पहचान के साधन है इसी तरह हमें आंखों से मोक्षमार्ग दिखाई नहीं देता लेकिन मोक्ष मार्ग को अन्य इंद्रियों से प्राप्त किया जा सकता है ।
ईश्वर की कृपा सिर्फ आंखों वालों पर होती है ऐसा नहीं है जो लोग भीतरी आस्था की आंखों से धर्मानुसार कार्य करते हैं, और सदकार्य करते हैं वे भी मोक्ष मार्गी होते हैं । मोक्षमार्ग की यात्रा बिना आंखों के भी मन की आंखों से होती है। सदकार्य , सेवा कार्य और जीवन के प्रति ईमानदारी यह सभी चार इंद्रियों से संचालित होती है जिसमें आंख का महत्व कम और मन में महत्त्व ज्यादा है। आंखों का उपयोग कम करो अन्य इंद्रियों का उपयोग ज्यादा करना चाहिए। आंखों से हमारा मस्तिष्क दूषित हो सकता है। आज के वातावरण में हम अच्छा कम बुरा ज्यादा देखते हैं, लेकिन स्पर्श, स्वाद, घ्राण इंद्रियां कभी भी मन को दूषित नहीं कर सकती । नेत्र का उपयोग करते समय संयम का पालन विशेष रूप से करना चाहिए चक्षु इंद्री के साथ अन्य इंद्रिय निरंतर कार्य करती रहती है। आंखें बंद करके भी हम काम करनें की कोशिश करते रहना चाहिए। दृष्टि जब कमजोर होती है तो हम जीवन में दृश्य देखने के लिए चश्मा लगाते हैं इसी तरह हमें मन को स्वच्छ रखने के लिए सद्कार्यों का चश्मा लगाना चाहिए सेवा कार्य, दान पुण्य करना चाहिए।
आचार्य श्री को शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य ललित, आरती पाटनी अजमेर एवं आचार्य श्री जी को पड़गाहन कर आहार देने का परम सौभाग्य सुरेंद्र जैन रिंकू जैन महामंत्री (दयोदय तीर्थ) एवं प्रतीक जैन को प्राप्त हुआ।
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विद्यामंत्र : मोक्ष मार्ग नेत्रों से नहीं इंद्रियों से प्राप्त होता है
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