जबलपुर। पूर्णायु आयुर्वेद परिसर दयोदय तीर्थ में विराजमान गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने नियमित प्रवचन में कहा कि हम अपने आंतरिक भावो के बारे में जानकारी ले सकते हैं। जब हमारे भाव हमारे भीतर ही हो करके हमसे बहुत दूर है, ऐसा अनुभव हमें होता रहता है। जबकि ऐसा है नहीं हम अपने भावों के निकट रहें, उनसे अलग ना रखें, भावों को निकट से समझने का प्रयास करें। तत्व दो प्रकार के होते हैं जड़ और चेतन इन दोनों का अनादि कालीन संबंध होने के कारण कभी वह एक शक्ति के रूप में जड़ शरीर के साथ संघर्ष कर रहे हैं।
अनादि काल से ज्ञात है, शरीर की प्रकृति कफ, वात, पित्त की होती है। आयुर्वेद में इन सब का इलाज जल से किया जा सकता है। जल को गर्म किया जाता है यानी जल की तपस्या होती है और इन तीनों तरह के रोगों की हार हो जाती है। इस तरह की चिकित्सा संबंधी उपाय अनुभव हजारा नामक पुस्तक में वर्णित है। इस पुस्तक में आयुर्वेद चिकित्सा के विभिन्न उपचार के हजार अनुभव लिखे गए हैं। हमें रोग से बचने के लिए भावों की तपस्या करनी पड़ती है। पैसे खर्च करने की बात नहीं है, पैसे की आवश्यकता नहीं है फिर हम उसकी और क्यों देखे संग्रह करें। जब अंतिम समय आएगा तब साथ कोई नहीं जाएगा न परिजन न धन।
हमारे सदभावों के माध्यम से बुरे कर्मों को नष्ट किया जा सकता है और यही सत्य है। इसी से मानसिक शांति मिलती है और शरीर निरोगी रहता है।
आज सांसद और लोकसभा के मुख्य सचेतक राकेश सिंह आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन एवं आशीर्वाद पाने दयोदय तीर्थ गौशाला पहुंचे। आचार्य श्री जी के दर्शन के बाद राकेश सिंह ने पूर्णायु आयुर्वेद संस्थान का अवलोकन भी किया।
महायोगी महातपस्वी परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर श्री १०८ विद्यासागर जी महामुनिराज को आज आहार कराने का महासौभाग्य जितेंद्र भैया, दीपक भैया, वंदना दीदी, विनीता दीदी, सुनंदा दीदी, (संघस्थ मुनि श्री निरोग सागर जी महाराज के गृहस्थअवस्था के (परिजनो) को प्राप्त हुआ।