हमारे आचार्यो ने चार प्रकार के कषाय बताए हैं, जो गांठ की ही भांति ही है। क्रोध , माया, मोह और लोभ यह गांठे निकालना बहुत कठिन है। अभी कुछ लोग इन चारों गांठो को खोलने तैयार हो गए हैं और शादी के समय पंडित ने जो गांठ लगाई वह भी खोल कर मुक्ति के मार्ग पर चलने की तैयारी कर रहे हैं। यदि आपने पहली गांठ निकाल दी तो आगे की गांठ निकालने में सरलता होगी। मनुष्य अवस्था में जो व्यक्ति जीवन के बंधन को समाप्त करते हुए आगे बढ़ते हैं वे सभी गांठो को छुड़ा लेते हैं।
चक्रवर्ती होते हुए भी भरत जब बाहुबली से हारे तो उन्हें भी मन में टीस हुई। गांठ लग गई, चक्रवर्ती होकर भी मैं बाहुबली से हार गया। जब भरत जी को वैराग्य हुआ तब अनंत काल के कषाय थे। जो टीस थी, जो बंधन थे, जो कांटे थे वह समाप्त हुई।
गृहस्थ अवस्था में भी काम, क्रोध, लोभ, मोह कि चारों गांठो को निकाल कर मोक्ष मार्ग पर चलने का अभ्यास प्रारंभ करना चाहिए, अंतिम क्षण में ही इसका मूल्य मिलता है अन्यथा अंतिम क्षणों में भी गांठे लगी होती हैं, तब मुक्ति नहीं होती आप घर में रहते हुए भी सच्चरित्र ,संयम धारण कर सल्लेखना के मार्ग पर चल सकते हैं।