एक व्यक्ति जो किसी व्याधि से पीड़ित था उसने शल्यक्रिया ना करा कर सल्लेखना व्रत का पालन किया, पहले समझाया पर वह अडिग था तब ही सल्लेखना का पालन कराया गया। सल्लेखना का अर्थ है मृत्यु महोत्सव। जहां मृत्यु भी एक महोत्सव के रूप में परिणित हो जाए। हर किसी को यह सुअवसर प्राप्त करना चाहिए। सामाजिक आचार संहिता का कठिन रूप से पालन करना चाहिए। इस प्रकार जैन आचायों ने मृत्यु महोत्सव के बारे में उल्लेख किया है कि मृत्यु से आप घबराते हैं। घबराने से मृत्यु टलती नहीं है। वह अटल है और केवल मांगने से मोक्ष नहीं मिलता। वह केवल साधना से मिलता है। मृत्यु को जीतना चाहते हैं लेकिन यह संभव नहीं है।
आप यह सब सुनकर जाइए घर जाकर विचार कीजिए। अपने सब कुछ जीवन में पा चुके हैं, घर गृहस्थिति सभी पा चुके हैं , अब त्याग और मुक्ति की ओर प्रशस्त होना चाहिए। कुछ लोग दीक्षित होकर मोक्ष मार्ग के रास्ते चल निकलेंगे। इनके घर पर सब कुछ है फिर भी इस मार्ग पर निकले हैं। कई लोग, दीक्षा लेने आए हैं घर वाले भी इनके प्रेरक हैं। जन्म तो एक बार होता है लेकिन मृत्यु तो हर पल होती है। अब यह लोग मोक्ष मार्ग पर चलने तैयार हुए हैं। आप सब को भी इस मार्ग पर चलने की तैयारी करनी चाहिए। आचार्य श्री को आहार चर्या का सौभाग्य आनंद, अरुण, आदित्य सिंघाई को प्राप्त हुआ।
दयोदय में दीक्षा की तैयारी प्रारम्भ हो चुकी है। ज्ञातव्य हो कि पूर्णायु परिसर दयोदय तीर्थ गौशाला में इसी सप्ताह सीमित संख्या में आचार्य श्री गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में छुल्लक दीक्षा समारोह संपन्न होने जा रहा है। छुल्लक साधु दो वस्त्रों का उपयोग करते हैं और संघ के साथ बिहार और अन्य नियम कर्मों का पालन करते हैं।
दयोदय में दीक्षा की तैयारी प्रारम्भ हो चुकी है। ज्ञातव्य हो कि पूर्णायु परिसर दयोदय तीर्थ गौशाला में इसी सप्ताह सीमित संख्या में आचार्य श्री गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में छुल्लक दीक्षा समारोह संपन्न होने जा रहा है। छुल्लक साधु दो वस्त्रों का उपयोग करते हैं और संघ के साथ बिहार और अन्य नियम कर्मों का पालन करते हैं।