भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा में नये नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी अब कमलनाथ की जगह वरिष्ठ विधायक एवं पूर्व मंत्री डाॅ.गोविंद सिंह सम्भालेंगे। कांगे्रस हाईकमान ने कमलनाथ का इस पद से त्यागपत्र स्वीकार करते हुए उनके द्वारा सुझाए गए नाम के आधार पर अनुभवनी व दबंग विधायक डाॅ.सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपी है। हालांकि इस निर्णय के कयास काफी दिनों से लगाए जा रहे थे, जो अब सामने आया है।
मध्यप्रदेश में 2023 के आखिर में चुनाव होने हैं। लेकिन कहीं ना कहीं राजनीतिक हलचल फिलहाल तेज होती दिखाई दे रही है। जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है। कमलनाथ की जगह डाॅ.गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। खबर तो यह भी है कि कमलनाथ फिलहाल पीसीसी चीफ का पद ही संभालेंगे। यानी कि वह मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने रहेंगे। कमलनाथ के इस्तीफे को पार्टी ने तुरंत स्वीकार भी कर लिया है। इसकी पुष्टि कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने की है। वही जिम्मेदारी मिलने के बाद गोविंद सिंह ने कहा कि जो भरोसा मुझ पर दिखाया गया है और जो भी जिम्मेदारी दी गई है उसका निर्वहन वह पूरी ईमानदारी के साथ करेंगे। गोविंद सिंह ने दावा किया कि पार्टी पहले भी मजबूत थी और आज भी मजबूत है और इसके खिलाफ जो भी साजिश रची गई है, उसका जवाब चुनाव में मिल जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सरकार लोगों पर अत्याचार कर रही है। उसके खिलाफ कांग्रेस लगातार लड़ाई लड़ रही है।
ऐसा है गोविंदसिंह का सियासी सफर
मध्यप्रदेश विधानसभा में 25वें नेता प्रतिपक्ष बनने जा रहे भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट से विधायक डॉ. गोविंद सिंह ने राजनीतिक क्षेत्र में जबलपुर में छात्रनेता के रूप में कदम रखा था। वे उस समय समाजवादी आंदोलन से प्रभावित थे। समाजवादी नेता के रूप में उन्होंने पहली बार भिंड की लहार विधानसभा सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और वे विधायक बन गए। भाजपा की सुंदरलाल पटवा सरकार बनी लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण 1992-93 में बर्खास्त हो गई। राष्ट्रपति शासन लगा तो डॉ. गोविंद सिंह उस दौरान तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिग्विजय सिंह के संपर्क में आए और कांग्रेस की सदस्यता ले ली।
अर्जुनसिंह के भी करीबी रहे
डॉ. गोविंद सिंह की निकटता पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. अर्जुनसिंह के साथ होती गई क्योंकि तब दिग्विजय सिंह भी अर्जुनसिंह से जुड़े हुए थे। दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में चार साल तक साथ रहने से उनके संबंध और प्रगाढ़ होते गए। हालांकि मौजूदा परिस्थितियों में प्रदेश कांग्रेस के महत्वपूर्ण स्तंभ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से भी उनके अच्छे संबंध हैं। डॉ. गोविंद सिंह की वरिष्ठता की वजह से पार्टी में उनकी बात को सभी नेता महत्व देते हैं। कांग्रेस विधायकों में से अन्य कोई भी विधायक सात बार का विधायक नहीं है और उनके समकक्ष विधायकों में केपी सिंह भी छह बार के विधायक हैं।
दूसरी बार में कांग्रेस विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे
पहली बार जनता दल से विधायक बनने के बाद दूसरी बार कांग्रेस से विधायक बने। इसके पूर्व बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण दंगों से राष्ट्रपति शासन लागू हुआ और 1993 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो डॉ. गोविंद सिंह ने कांग्रेस की टिकट पर लहार से चुनाव लड़ा। दिग्विजय सरकार बनी लेकिन तब उन्हें मंत्री पद नहीं मिला और 1998 में तीसरी बार विधायक चुने जाने पर गृह राज्यमंत्री बनाए गए। 2002 में उन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया गया। मगर 2003 में कांग्रेस सरकार चली गई और भाजपा सरकार बनी तो वे मुख्य सचेतक बने। 2018 में जब कांग्रेस की 15 साल बाद सरकार बनी तब कमलनाथ के मुख्यमंत्रित्वकाल में उन्हें फिर मंत्री बनाया गया।