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मुंबई की जोया थॉमस लोबो ने जीवन के कड़े संघर्षों का सामना करते हुए ऐसा मुकाम बना लिया है जो न केवल उसकी पहचान बन गया है बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा भी साबित हो सकती है। जोया ट्रांसजेंडर है और बिना किसी का सहारा लिए ही ऐसा फील्ड चुना जिसने काफी कम समय में ही उसकी पहचान मीडिया प्लेटफार्म पर बना दी है।
अपनी आपबीती सुनाते हुए 28 साल की जोया बताती है कि उसको 11-12 साल की उम्र में पता चला था कि वो अन्य लड़कों से अलग है, लेकिन कुछ सालों तक वो अपनी पहचान बचाने से डरती रही। जोया की मां को डर था कि यदि ये अपनी पहचान उजागर करती है तो समाज इसे सेक्स वर्कर समझेगा। अन्य ट्रांस वुमन की तरह उन्हें भी प्रताड़ित किया जाएगा। लेकिन, जोया को कैमरे में नेचर को कैद करने का शौक बचपन से था। इसलिए उन्होंने फोटोग्राफी में अपना करियर चुना। जोया ने भीख मांगकर कैमरे खरीदे और अब वो इंडिया की पहली ट्रांस फोटो जर्नलिस्ट हैं।
जोया कहती हैं, मैंने अपने भीतर के स्त्री को छुपा रखा था। मुझे बचपन से महिलाओं की तरह सजने-संवरने का शौक था। मेरी बॉडी-लैंग्वेज भी महिलाओं जैसी थी। लड़कियों के साथ खेलना अच्छा लगता था। लोग टोकते थे कि मैं ऐसे क्यों बात कर रही हूं। लड़कियों के बीच क्यों उठ-बैठ रही हूं?
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जोया आगे बताती हैं, आखिरकार एक दिन मैंने अपनी मां से अपने मन की बातें बताईं और 18 साल की उम्र में किन्नर समाज की एक गुरू से मिली, जहां से मैं अपनी दुनिया में आ गई। ठहरते-ठहरते जोया आवेश में कहती हैं, ट्रांस समुदाय को हमारे समाज में कोई काम नहीं दिया जाता है। इसलिए, मैं मुंबई की लोकल ट्रेन में भीख मांगा करती थी, आज भी मांगती हूं, लेकिन सपना फोटोग्राफर बनने का था। कैमरा खरीदने के पीछे की कहानी जोया बताती हैं। कहती हैं, ट्रेन में मांगकर और दिवाली में कमाकर जो थोड़े बहुत पैसे बचते थे, उससे एक पुराना कैमरा खरीदा। यूट्यूब देखकर कैमरा चलाना सीखा, लेकिन काम की मुझे अभी भी जरूरत थी।
जोया गरीबी के कारण 5वीं तक की पढ़ाई ही कर पाई। वो कहती हैं, मुझे हिंदी, अंग्रेजी और मराठी तीनों भाषा बोलने आती है। पापा वाचमैन थे। मुंबई के माहीन इलाके में रहती थी। एक छत थी, वो भी उनकी मौत के साथ छिन गई। जोया कहती हैं, महीनों तक फ्लाईओवर के नीचे सोती थी। थिएटर की सफाई करने का काम भी कुछ महीनों तक किया।
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जोया को एक शॉर्ट फिल्म में काम करने मौका मिला और ये उनके लिए टर्निंग प्वाइंट था। जोया कहती हैं, मैं शॉर्ट फिल्म देखा करती थी। मुझे याद है, ट्रांसजेंडर पर बनी एक शॉर्ट फिल्म देख रही थी, लेकिन उसमें काम करने वाला कोई भी एक्टर असल में किन्नर नहीं था। ये बात मुझे खटकी। मैंने किसी तरह से फिल्म निर्देशक से संपर्क किया और कहा कि ट्रांस रोल के लिए किन्नर को मौका क्यों नहीं दिया जाता है।
जोया की इस बात ने फिल्म निर्देशक को सोचने पर मजबूर कर दिया और साल 2018 में उन्हें उस शॉर्ट फिल्म के सीक्वल में काम करने का मौका मिला। जोया ने फ्रीलांस जर्नलिस्ट के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की।
कोरोना काल में जोया को फोटोग्राफर के तौर पर पहचान मिली। इस जर्नी के बारे में जोया बताती हैं, कोरोना के समय एक तरफ अस्पतालों, श्मशान घाट में डरावना दृश्य था। लॉकडाउन की वजह से लोग पलायन कर रहे थे। इसी दौरान दिल्ली में किसान आंदोलन शुरू था। मैंने इन सभी घटनाओं को कैमरे में कैद किया। लोगों ने इसे पसंद किया। फोटो अखबार, डिजिटल३ अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर छपने लगे। जहां से मुझे बतौर फोटो जर्नलिस्ट पहचान मिली।
हालांकि, जोया को आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्हें फुलटाइम नौकरी की जरूरत है। जोया बताती हैं, कई मीडिया हाउस वाले मेरे जर्नी पर मुझसे बात करते हैं, इंटरव्यू लेते हैं, छापते हैं, लेकिन अभी भी नौकरी की जरूरत है। अच्छे फोटो जर्नलिस्ट होने के बावजूद जोया को आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्हें फुलटाइम नौकरी की जरूरत है।
वो कहती हैं, समाज हमारा आज भी पूरी तरह से नहीं बदला है। इस सदी में भी 30ः लोग ही मुझे स्वीकार करते हैं। जब मैं रेस्टोरेंट, कैफे जाती हूं तो लोग अलग नजरिए से देखते हैं।
जोया को आज भी राज्य या केंद्र सरकारी की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है। ना तो महाराष्ट्र सरकार राशन देती है और ना ही रहने के लिए बेहतर घर है। जोया बस सपनों के साथ जी रही हैं। कहती हैं, जीने और कुछ करने की जिद है, जिसकी वजह से संघर्ष कर रही हूं।
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