खबरी गुरु डेस्क....
आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी रही होगी जिसकी वजह से महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू को कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा की सदस्यता लेनी पड़ी। यह चर्चा आज जबलपुर के राजनीतिक गलियारों में दिनभर बनी रही। दरअसल, आज आम लोगों को जब इस बात की जानकारी मिली कि महापौर अन्नू सिंह ने मुख्यमंत्री मोहन यादव के हाथों भाजपा की सदस्यता ले ली है तो वे अचम्भित रह गए। बताया जा रहा है कि इस फैसले की इबारत तो करीब एक माह पहले ही लिख ली गई थी जो आज लोगों की नजर में आई।
जबलपुर के प्रथम नागरिक तथा शहर कांगे्रस के सेनापति जगत बहादुर सिंह अन्नू ने बुधवार को अपनी पार्टी को छोड़ दिया। इस संस्था को वे कभी अपनी मां कहते थे और उनकी छवि भी आम जनमानास सहित पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच एक जुझारू व सुलझे हुए नेता के तौर पर बनी हुई है। इस मामले में कई तरह की चर्चाएं खुलकर सामने आ रही हैं। कहा तो यह जा रहा है कि अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने के साथ ही नगर निगम में दबाव के चलते अन्नू सिंह को यह कदम उठाना पड़ा।
राजनीतिक भविष्य की फिक्र
चर्चा के मुताबिक नगर निगम चुनाव में महापौर के रूप में चुना जाना अन्नू सिंह का महज इत्तेफाक नहीं था। उनकी छवि के साथ ही विपक्षी प्रत्याशी का जनता से सीधा जुड़ाव न होना भी एक खास कारण रहा है। कांग्रेस लगातार नुकसान के रास्ते चल रही है। आने वाले समय में कांग्रेस की स्थिति और अधिक बिगड़ना भी तय माना जा रहा है। शायद, यही भाव अन्नू सिंह को लगने लगे और उन्होंने अपना अपनी राजनीतिक पारी को और अधिक लम्बा व सुरक्षित बनाने के लिए यह कदम उठाया। हालांकि दूसरा पक्ष इसे अति महत्वाकांक्षा का नाम दे रहा है।
पर्दे के पीछे कोई और
अगर चर्चाओं पर भरोसा किया जाए तो इस पूरी पिक्चर में कुछ और ही दिख रहा है। कहा जा रहा है कि एक बड़े नेता जिनकी कांग्रेस में अच्छी खासी पकड़ भी है, उनके इशारे पर पार्टी बदलने का यह खेल चल रहा है। इस बात में दम इसलिए भी दिखाई देती है, क्योंकि अभी तक सिहोरा विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी रहे खिलाड़ी सिंह आर्मो तथा एकता ठाकुर ने भी कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा को अपना लिया था। इसके बाद महापौर अन्नू सिंह ने इस क्रम को आगे बढ़ाया है। यह भी महज इत्तेफाक नहीं है कि अभी तक पाला बदलने वाले तीनों ही कांग्रेस नेता उन्हीं बड़े नेता जी के समर्थक बताए जाते हैं। इन तीनों को पार्टी का टिकट भी उन्हीं की अनुशंसा पर मिला था। कहा जा रहा है कि सांसद चुनाव के लिए वे अपनी बिछात बिछा रहे हैं।
नगर निगम में विपक्ष सहित अपनों का भी दबाव
अन्नू सिंह का पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने के पीछे एक तीसरा प्रमुख कारण जो सामने आया है वह नगर निगम में विपक्ष सहित अपनी ही पार्टी के नेताओं व पार्षदों का दबाव भी माना जा रहा है। चर्चा है कि कांग्रेस के महापौर के रूप अन्नू सिंह भले ही चुनकर नगर निगम पहुंच गए हों लेकिन उनकी सेना बहुमत में नहीं थी। भाजपा की तुलना में कांग्रेस के कम ही पार्षद जीतकर नगर निगम पहुंच सके। स्थानीय नेताओं का दबाव इस कदर हावी था कि अन्नू सिंह मेयर इन काउन्सिल में अपना कोई पार्षद शामिल नहीं कर सके। यही वजह रही है कि जहां भाजपा पार्षद नेता प्रतिपक्ष कमलेश अग्रवाल के नेतृत्व में लगातार नगर सत्ता पर दबाव बनाकर रखने में सफल रहे वहीं अब तो उनकी खुद की पार्टी के पार्षद और एमआईसी सदस्य भी आरोप लगाने में पीछे नहीं रहते हैं। खुलेआम उन पर अक्षमता और अनियमितताओं के आरोप लगने लगे हैं।
बहरहाल अन्नू सिंह के इस निजी फैसले ने कांग्रेस में एक तरह का भूचाल ला दिया है। कांग्रेस को अपनी सफलता गिनाने का एकमात्र माध्यम भी यही था जो अब छिन चुका है। नगर सत्ता भी बदलकर भारतीय जनता पार्टी के हाथों में पहुंच गई है। जो विपक्ष में हैं वे अब नगर सरकार और एमआईसी का हिस्सा होंगे।